दोस्तों राजनीती में कब क्या जाए कुछ पता नही चलता .अक्सर नेता एक पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल होते रहते है .उनके इस निर्णय से कई बार तो उन्हें लाभ होता है लेकिन कई बार उनके द्वारा लिया गया पार्टी छोड़ने का निर्णय कुछ ख़ास फायदे का सौदा साबित नही हो पाता . आज हम आपको ऐसे ही एक मामले के बारे में बताने वाले है . खबर आई है कि कांग्रेस को छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाली नेता के लिए उनका ये निर्णय कुछ फायदेमंद साबित होता हुआ नज़र नही आ रहा है .इस मामले से सम्बन्धित पूरी खबर जानने के लिए खबर को अंत तक पढ़े .
अदिति सिंह उन कुछ कांग्रेस उम्मीदवारों में से एक हैं जो 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान जीतने में सफल रहे। उन्होंने अपने बीएसपी प्रतिद्वंद्वी शाहबाज खान को 89,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था। उनके पिता अखिलेश कुमार सिंह ने 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 में लगातार पांच बार निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि, वे उत्तर प्रदेश में 2022 के राज्य चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। उनके पति अंगद सिंह अभी भी कांग्रेस पार्टी में हैं और नवांशहर निर्वाचन क्षेत्र से पंजाब विधानसभा में विधायक हैं।
कांग्रेस से बागी होकर भाजपा(BJP) में शामिल हुईं अदिति सिंह के लिए भाजपा (BJP) का दामन थामना अबतक मुनाफे का सौदा नहीं दिखता। भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने की वजह से उनके पिता, जिनकी छवि रायबरेली (Raebareli) में रॉबिनहुड सरीखी रही है, उनके बनाए वोटबैंक में सेंध लगी। अदिति ने जब 2017 में राजनीति में कदम रखा था, तब वह कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ी थीं और 90 हजार वोटों के अंतर से जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। इस बार वह चुनाव जीत तो गईं लेकिन जीत का अंतर सिमटकर सात हजार वोटों के आसपास रह गया। इसके अलावा क्षेत्रीय अदावत वाले परिवार, यानी दिनेश सिंह को भाजपा ने ताकत दी जबकि अदिति के हिस्से मंत्रिमंडल में जगह नहीं आई। अदिति सिंह उन कुछ कांग्रेस उम्मीदवारों में से एक हैं जो 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान जीतने में सफल रहे। उन्होंने अपने बीएसपी प्रतिद्वंद्वी शाहबाज खान को 89,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था। उनके पिता अखिलेश कुमार सिंह ने 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 में लगातार पांच बार निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि, वे उत्तर प्रदेश में 2022 के राज्य चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। उनके पति अंगद सिंह अभी भी कांग्रेस पार्टी में हैं और नवांशहर निर्वाचन क्षेत्र से पंजाब विधानसभा में विधायक हैं।
दिनेश प्रताप का कद बढ़ाना चाहती है भाजपा
वहीं अदिति सिंह की जगह भाजपा ने दिनेश प्रताप सिंह पर ही भरोसा बरकरार रखा है। दिनेश को योगी मंत्रीमंडल में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है। सूत्र बताते हैं कि इसकी वजह 2024 का लोकसभा चुनाव है। चुनाव के पहले भाजपा रायबरेली में दिनेश का कद बढ़ाना चाहती है। पिछले एक दशक में रायबरेली में दिनेश का परिवार राजनीतिक तौर पर काफी ताकतवर रहा है। दिनेश खुद साल 2010 और 2016 में एमएलसी चुने गए थे। इसके अलावा दिनेश के भाई राकेश सिंह हरचंदपुर से 2017 में विधायक बने थे। 2016 में जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट दिनेश के भाई अवधेश को मिली थी। हालांकि, अब जबकि दिनेश भाजपा में हैं तो स्थितियां कुछ अलग हैं।इस बार के विधानसभा चुनाव में दिनेश के भाई हार गए। जिला पंचायत अध्यक्ष भी अवधेश नहीं रहे और दिनेश का खुद का एमएलसी का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। यह बात अलग है कि दिनेश को भाजपा ने रायबरेली स्थानीय निकाय सीट से विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में पहले की तुलना में राजनीतिक तौर पर कमजोर होते दिनेश को भाजपा इसलिए ताकत देना चाहती है, ताकि वह मजबूती से कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अपनी दावेदारी रख सकें और भाजपा प्रदेश में कांग्रेस का यह आखिरी किला भी भेद सके। भाजपा इसके पहले 2019 में अमेठी से राहुल गांधी को हरा चुकी है जबकि दिनेश रायबरेली से भाजपा उम्मीदवार थे। वह चुनाव भले हार गए थे, लेकिन उन्हें भाजपा उम्मीदवार के तौर पर रायबरेली से सबसे ज्यादा वोट मिले थे।
विदेश में पढ़ाई, कांग्रेस विधायक से हुई शादी, लाखों की मालकिन
अदिति सिंह का जन्म 15 नवंबर 1987 को लखनऊ में हुआ था। अदिति ने यूएसए के ड्यूक विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज की डिग्री हासिल की है। विदेश से पढ़ाई के बाद अदिति ने अने पिता अखिलेश सिंह की राजनीतिक विरासत संभाली और विधायक बनीं। 21 नवंबर 2019 को अदिति सिंह ने पंजाब के कांग्रेस विधायक अंगद सिंह संग शादी कर ली थी।